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सर्वोच्च अदालत ने NIA को लगाई फटकार, मुकदमे में देरी पर कहा- ‘कृपया न्याय का मजाक न बनाएं’
सर्वोच्च अदालत ने बुधवार को जाली नोटों के मामले में केस चलाने में देरी के लिए राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) की फटकार लगाई , जिसके कारण आरोपी को बिना सुनवाई के चार साल तक जेल में रहना पड़ा। न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने जोर देकर कहा कि त्वरित सुनवाई का संवैधानिक अधिकार कथित अपराध की गंभीरता पर निर्भर नहीं हो सकता।
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पीठ ने साथ में यह भी कहा कि मुल्जिम को त्वरित सुनवाई का अधिकार है। और पीठ ने कहा कि 'आप NIA हैं। कृपया न्याय का मजाक न बनाये। आप की वजह से आरोपी को चार साल हो गए हैं, और मुकदमा अभी तक शुरू नहीं हुआ है। ऐसा नहीं किया जाना चाहिए।' सर्वोच्च अदालत ने ये टिप्पणियां जावेद गुलाम नबी शेख द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए कीं, जिसमें बॉम्बे उच्च न्यायलय के आदेश को चुनौती दी गई थी।
इसमें उनकी बेल याचिका पर विचार भी नहीं किया गया था। 2020 में, याचिकाकर्ता को मुंबई पुलिस ने गिरफ्तार किया था, और जिसके बाद कथित तौर पर पाकिस्तान से आने वाले नकली नोट बरामद हुए थे। और बाद में NIA ने मामले को अपने हाथ में ले लिया। जिसमे सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दो सह-आरोपियों को पहले ही बेल दे दी गई है, तथा एक बेल आदेश को वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा रही है, लेकिन बेल पर कोई रोक नहीं है।
पीठ ने अपने आदेश में यह भी कहा कि 'अपराध चाहे कितना भी गंभीर क्यों न हो, मुल्जिम को संविधान के तहत त्वरित सुनवाई का अधिकार प्राप्त है। और हमें पूरा विश्वास है कि जिस तरह से कोर्ट और अभियोजन एजेंसी ने इस मामले में कार्यवाही की है, उससे त्वरित सुनवाई के अधिकार को झटका भी लगा है, जिससे संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन हुआ है।' अनुच्छेद 21 सभी व्यक्तियों को जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार देता है।
सुनवाई के दौरान पीठ ने मुकदमे में देरी की आलोचना करने में कोई कसर नहीं छोड़ी और NIA से मामले में अपना जवाबी हलफनामा दाखिल करने के लिए और समय मांगने के बजाय त्वरित सुनवाई के अधिकार को बरकरार रखने का आग्रह किया। पीठ ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने अभी तक याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोप तय नहीं किए हैं और अभियोजन पक्ष से 80 गवाहों की जांच करने की उम्मीद है, साथ ही उन्होंने मुकदमे की शुरुआत में देरी की ओर इशारा किया।
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