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इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया है कि किसी वकील या वकीलों के संगठन द्वारा हड़ताल पर जाना या हड़ताल का आह्वान करना या किसी वकील या न्यायालय के अधिकारी या कर्मचारी या उनके रिश्तेदारों की मृत्यु के कारण शोक संवेदना के रूप में काम से विरत रहना प्रत्यक्ष रूप से आपराधिक अवमानना का कृत्य माना जाएगा।
हालांकि, न्यायालय ने स्पष्ट किया कि वकील या उनके संगठन केवल 3:30 बजे के बाद ही शोक सभा बुला सकते हैं।
न्यायमूर्ति अश्विनी कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति गौतम चौधरी की खंडपीठ ने उत्तर प्रदेश के सभी जिला न्यायाधीशों को निर्देश दिया कि वे अपने-अपने न्यायालयों में वकीलों द्वारा हड़ताल के किसी भी कृत्य की सूचना हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को दें, और साथ ही हड़ताल का आह्वान करने वाले संबंधित बार एसोसिएशन के पदाधिकारियों के नाम भी दें, ताकि उनके विरुद्ध आपराधिक अवमानना की कार्यवाही शुरू की जा सके।
उच्च न्यायालय ने आगे कहा कि इन निर्देशों को सभी जिला न्यायालयों में प्रसारित किया जाना चाहिए और इनका सख्ती से अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए पूरे राज्य में सभी न्यायालयों के नोटिस बोर्ड पर प्रदर्शित किया जाना चाहिए।
न्यायालय ने ये निर्देश स्वप्रेरणा से आपराधिक अवमानना मामले की सुनवाई करते हुए जारी किए, जिसमें प्रयागराज के जिला न्यायाधीश से प्राप्त रिपोर्ट पर संज्ञान लिया गया था, जिसमें संकेत दिया गया था कि जुलाई 2023 और अप्रैल 2024 के बीच जिला न्यायालय में वकीलों ने कुल 218 दिनों में से 127 दिन काम से विरत रहे या हड़ताल का सहारा लिया।
यह देखते हुए कि सर्वोच्च न्यायालय ने कई फैसलों में कहा है कि वकीलों का हड़ताल पर जाना न केवल न्यायालय की अवमानना है, बल्कि पेशेवर कदाचार भी है, कोर्ट ने उत्तर प्रदेश की जिला कोर्टो में हड़ताल की समस्या को रोकने के लिए बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई), उत्तर प्रदेश राज्य बार काउंसिल और इलाहाबाद उच्च न्यायालय बार एसोसिएशन से सुझाव मांगे।
पीठ ने 7 अगस्त के अपने आदेश में उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल की एक रिपोर्ट पर भी विचार किया, जिसमें संकेत दिया गया था कि वकीलों द्वारा हड़ताल के आह्वान के कारण उत्तर प्रदेश भर में जिला अदालतों में न्यायिक कार्य गंभीर रूप से बाधित है।
इस मामले की अगली सुनवाई अब 25 सितंबर को होगी।